Sunday 24 July 2011

दोस्तों की मुलाकातें

दोस्तों की मुलाकातें
हर्ष-उल्लास से भरी होती हैं कितनी
कभी-कभी उदासी भी छा जाती है
देखकर किसी दोस्त को उदास.

छोटा पौधा बढ़ते-बढ़ते
छायादार वृक्ष बनता है
आकाश को छूती उसकी बाहें
कुछ कहती जान पड़ती हैं.

हरी पत्तियों से भरा
मुस्कुराता कभी
ठहाका लगाकर हँसता
झूलता हवा में लहराता कभी
दोस्त जैसे, मेरा हँसता है.

हर मौसम में सहारा देता
मुसीबतों के छन
डटकर खड़ा पाया इसे.

जाते समय हाथ मिलाता है
बिदाई देता, जाने तक देखता रहता
पीछे से बुलाता
कोई भूली बात याद कराता
बतियाने लगता
ऐसे ही बहुतबार हम हाथ मिलाते
एक दूसरे से बिदाई लेते.

पेड़ की छाया छोड़ना
और
छोड़कर चले जाने की इच्छा होती नहीं मेरी.

Saturday 23 July 2011

कूड़े दान के पास एक पुस्तक

साफ़-सफाई
जरूरी है
घर-बाहर की
चिल्लाती हुई
दादी बाहर निकला आई.

दादा का मुँह
पीला हो गया
खुला रहा गया
देखकर
दादी के हाथ में
धूल भरे मकड़ी के जले
लिपटा लंबी डंडी वाला झाडू.

कई दिनों से
सफाई नहीं हुई
ऐसा नहीं है
रोज धूल जमती है
मकड़ी बच्चे जनती है.

कीड़े-मच्छर
बढ़ने लगे हैं
दीमकों की एक बड़ी फौज
बनती-बढ़ती जा रही है
विचारों का भूसा
काना-अंधा बना रहा है
सफाई की जरुरत है
मेरे मस्तिष्क की.

दादी से
वह लंबी डंडी वाला झाडू
मांगर लाना चाहता हूँ
और
दादा से वह पुस्तक
जिसे पढ़कर
उन्होंने घर बाहर की सफाई
की कला सीखी थी.

Wednesday 20 July 2011

ये टहनियाँ

ये टहनियाँ
कितनी सूखी हुई हैं
पक्षियों का भार
वहन करने का सामर्थ्य
नहीं दीखता इनमें.

पेड़ के नीचे
कईं टहनियाँ टूटी पडी हैं.

ये टहनियाँ अपनी
जवानी की कथा
बुढ़ापे की व्यथा सुनाती हैं.

होम हो कर
अपनी सार्थकता सिद्ध
करने के लिए
आतुरता से प्रतीक्षा करती है.