Sunday 20 November 2011

भीड़ में अकेला

भीड़ में अकेला

लगता उसे
भीड़ उस ही के साथ हैं
चलने लगता वह
उसके साथ जो
उसकी बगल से निकल जाता
कभी बाएँ
कभी दाएं
कभी सीधे
कभी पीछे
लौट आता
करजर घूमाता
सोचता
मौस घूमाता
सोचता
मेरे साथ कौन है?
मैं किस-के साथ हूँ?
यहाँ किस ने लाया मुझे ?
मैं अब कहाँ हूँ?
ज्यों वह अब तक वह कोमा में था
होश में आने का प्रयास करते - करते
किसी अनजान साईट पर चला जाता है
ज्यों किसी भवंडर में फंसा हो
बाहर छह कर
भी नहीं निकल पाता है.