Sunday, 12 June 2011
बाबा रामदेव को समर्पित
Monday, 6 June 2011
लोकतंत्र में तानाशाही

Sunday, 15 May 2011
चुप रहो!
सब कुछ रहा था
बोलना चाहते हुए भी
चुप.....?
मित्र ने कहा-
अरे! तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?
केवल मुस्कुराया
मुस्कान देखकर
वह भी चुप हो गयी।
बहस करने वाले
लोग
चुप हो गए।
मैंने
उठते हुए
अपने -आप से कहना चाहा
लोग बहुत बोलते हैं
काश..!
कभी -कभी
कुछ... करें
चुप रहें.
Friday, 13 May 2011
सिक्का उछालके
Wednesday, 11 May 2011
स्रवंति, अज्ञेय और मेरी पहली पोस्ट
नमस्ते पाठको.
यह ब्लॉग बनाए मुझे पूरा एक ज़माना हो गया है. लेकिन कोई भी पोस्ट लिखने की हिम्मत नहीं हुई. आदरणीय श्री चंद्रमौलेशवर प्रसाद जी की प्रेरणा से आज पहली पोस्ट लिखने का साहस कर रहा हूँ.
मेरी यह पोस्ट मेरे मन की बात भी है और इसे एक अन्य ब्लॉग पर मेरी प्रतिक्रिया भी माना जा सकता है.
कुछ दिन पहले हैदराबाद में अज्ञेय जी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई थी. आदरणीय गुरुवर प्रो.ऋषभ देव शर्मा जी ने मुझे उस संगोष्ठी के एक सत्र का संचालन करने का अवसर प्रदान किया. मैं उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ. स्रवंति के ब्लॉग पर उसी संगोष्ठी की रिकार्डिंग का लिंक देखा तो बड़ी प्रसन्नता हुई. मन में आया कि उसके संबंध में कुछ लिखूं. वही बात मैंने यहाँ पोस्ट के रूप में दे दी है.
आपकी सेवा में प्रेषित है-
दो-दो बार (१. राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों के बीच बैठकर अज्ञेय को अलग-अलग ढंग से समझने का और २. स्रवंति के ब्लॉग पर संगोष्ठी की रिकार्डिंग सुनने का अवसर) 'अज्ञेय' को 'ज्ञेय' बनाने की कोशिश का हिस्सा बनने का अवसर देने के लिए धन्यवाद.
पढ़ने-पढ़ाने का कार्य करने वाले अर्थात विद्यार्थी, अध्यापक, शोधार्थी और हाँ ! स्वांत सुखाय व्यक्ति शायद संगोष्ठी और पोस्टर प्रदर्शनी में भाग लेकर मेरी तरह ही सोचतें होंगे. यदि नहीं तो उन्हें फिर से एक बार विचार करना ही चाहिए कि इतने विविध दृष्टियों से किसी एक रचनाकार को समझने का प्रयास किया गया, कोई तो महत्त्व की बात होगी. आपके द्वारा प्रेषित इस रिकार्डिंग से ऐसे विचारकों को पुनः विचार करने का अवश्य अवसर मिलेगा. ऐसी आशा है.
जिन्दगी में रिटेक का मौका नहीं मिलता लेकिन यह रिकार्डिंग उस दिन उपस्थित -अनुपस्थित सभी अज्ञेय प्रेमियों को बार-बार रिटेक करने का मौका जरूर देगी. मैं समझता हूँ कि साहित्य के चाहने वालों को अज्ञेय और उन्ही की तरह आधुनिक साहित्यकारों को देखने-समझने की एक नई दृष्टी अवश्य मिलेगी.
इस में कोई शक नहीं कि शोधार्थियों को तो अवश्य लाभ मिलेगा. मेरी राय में तो उन्हें एक बार फिर से तारो ताजा हो कर इस रिकार्डिंग को सुन लेना चाहिए ताकि उन्हें कम से कम निम्न बातें स्पष्ट रूप में समझ में आ जाए -
१. कैसा विषय चुने.
२. विषय अनुसार कैसी और कैसे सामग्री का संकलन करें.
३. अपने चुने हुए विषय को कैसे प्रस्तुत करें.
४. अपनी बात को उदाहरणों के द्वारा प्रामाणित करने का प्रयास कैसे करें इत्यादि.
कहना तो बहुत चाहता हूँ मगर समय का आभाव है इसलिए बस इतना ही बाकी आगे....
और हाँ! मुझे यहाँ प्रो.एम.वेंकटेश्वर जी की बात याद आ गई - उन्होंने संगोष्ठी के समापन सत्र में कहा था कि इस कार्यक्रम की रिकार्डिंग को पी. जी. विभाग के आर्काइव में सुरक्षित रखें ताकि अगले सत्रों के छात्रों को लाभ हो सके. मुझे लगा कि स्रवंति के ब्लॉग पर ये सारे लिंक देकर आपने पूरी संगोष्ठी को विद्यार्थियों के आलावा दूसरे जिज्ञासू पाठकों के लिए भी उपलब्ध कराकर बड़ा उपकार किया है.
मेरे ख़याल से आडियो केसेट से एमपी3 में बदलना और फिर छह-सात घंटे की सामग्री को ब्लॉग पर अपलोड करना आसान काम नहीं रहा होगा.जिन भी छात्रों, प्राध्यापकों या तकनीशीयनों ने इस बड़े काम को अंजाम दिया, मेरी ओर से उन तक नमस्कार पहुंचा दें.
वैसे मेरा भी बहुत मन करता है कि इस सब में अपने गुरुजन का हाथ बटाऊँ लेकिन नौकरी की भाग-दौड में नेट पर कभी-कभी ही आ पाता हूँ.
प्रयास करूंगा कि भविष्य में इस ब्लॉग को चालू रख सकूं...
"बैठो, रहो, पुकारो गाओ
मेरा ऐसा कर्म नहीं
मैं हारिल हूँ
बैठे रहना मेरे कुल का धर्म नहीं." - (अज्ञेय)