Sunday 15 May 2011

चुप रहो!

सुन तो मैं
सब कुछ रहा था
बोलना चाहते हुए भी
चुप.....?

मित्र ने कहा-
अरे! तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?
केवल मुस्कुराया
मुस्कान देखकर
वह भी चुप हो गयी।

बहस करने वाले
लोग
चुप हो गए।

मैंने
उठते हुए
अपने -आप से कहना चाहा
लोग बहुत बोलते हैं
काश..!
कभी -कभी
कुछ... करें
चुप रहें.

5 comments:

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा said...

अच्छी रचना है.
मिलने पर शैली पर बात करेंगे.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अच्छी शैली है... मिलने पर शाल का प्रबंद करेंगे :)

Gurramkonda Neeraja said...

चुप रहेंगे तो आगे क्या कहेंगे .............

डॉ.बी.बालाजी said...

@चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद
धन्यवाद सर.
आपका आशीर्वाद ही एक बड़ी और मुलायम शाल है. यह गर्मी में ठंडक देती है और सर्दियों में गर्मी.
अरे ! हाँ , मच्छारों से भी बचाती है.
लेखन यात्रा में बहुत काम आती है आपके आशीर्वाद की शाल. इसे हमें ओढ़ते रहिए.

डॉ.बी.बालाजी said...

@ गुर्रमकोंडा नीरजा
धन्यवाद नीरजा जी.
जब शब्द न हों तब चुप रहिए. कोई बात नहीं.
मगर आपके पास तो शब्दों का भण्डार है.
देखिए, अब आप मेरी बात का विरोध न कीजिए.
आपकी लेखनी इसका प्रमाण है. (स्रवंति, स्वतंत्रवार्ता और आपके ब्लॉग पर आपकी कलम बोलती है, अच्छे और बढ़िया शब्द रचती है)
आपने शब्दों का अच्छा उपयोग किया और आपने पूछ ही लिया है तो 'हम कहे देतें हैं' कहिए जो आप कहना चाहती हैं. हम सुनेगें जरूर.