Sunday 28 August 2011

सरकारी दफ्तर पर व्यंग्य

मेरे पापा के एक दोस्त हैं लल्लू लाल. हम बच्चे उन्हें प्यार से लालू अंकल कहते थे. एक दिन वे हमारे घर आए. उनके हाथ में एक मिठाई का डिब्बा था. पापा से मिलते ही लालू अंकल ने कहा लो भाई अपना मुँह मीठा करो. मेरे बेटे मुंगेरी लाल को सरकारी नौकरी लग गई. मेरे बरसों का सपना पूरा हो गया. उस दिन मैं अपने पापा को लालू अंकल से कहते सुना कि सरकारी नौकरी मिलना मतलब सरकार का दामाद बनना. उस समय मुझे वह कहावत समझ नहीं आई. तब मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता था. इस कहावत का मतलव मुझे छठी कक्षा में समझ में आया.
हुआ यूं कि एक दिन अचानक हमारे घर मेरा मौसेरा भाई अमन आ गया. उसे अपने स्कालरशिप की अर्जी देने मुनसिपल आफ़िस जाना था. वह आफ़िस हमारे घर के बहुत करीब था. वह शहर में नया था. उसे उस आफिस का पता नहीं मालूम था. मैं अमन भैया को आफिस दिखाने के लिए उनके साथ चला गया.
आफिस को मैंने बाहर से कई बार देखा था मगर अन्दर कभी नहीं गया था. मैं पहली बार आफिस के अन्दर जा रहा था. आफिस बहुत पुराना लगा रहा था. उसकी दीवार पर न जाने कब कलरिंग हुई थी पता ही नहीं चल रहा था. भैया ने एक खिड़की के सामने खड़े हो कर कुछ पूछा. मैं तो इस हिस्टोरिकल मोनुमेंट को देखने में बीजी था. भैया ने मेरा हाथ पकड़कर कहा चल हमें अन्दर जाना है. अन्दर हमारे किसी दूर के रिश्तेदार के दामाद काम करते थे. मुझे तो पता ही नहीं था. उसने उन्हीं का नाम और काम की जगह पूछी थी खिड़की वाले आदमी से.
हम दोनों अन्दर गए. मैंने देखा एक चपरासी अपनी हथेलियों पर कुछ रख कर ताली बजा रहा था. मैंने अपने भैया से पूछा वह आदमी क्या कर रहा है. उसने बताया कि वह तम्बाकू खा रहा है और उसके बगल वाली दीवार उसी के थूंक से लाल हो गई है. वैसे उस सरकारी आफिस की दीवारें भले ही बाहर से बेरंगी दिखती हों मगर भीतर से बहुत रंगीन थीं. विशेषकर दीवारों के कोने. मैं हैरान था कि दीवारों के कोनों पर यह मार्डन आर्ट किसने उकेरा है. इस रहस्य का खुलासा भी मेरे भैया जी ने ही किया. सरकारी आफिसों में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी अपनी कला का अपने थूंक से यूं प्रदर्शन करते हैं.
हमारे दूर के रिश्तेदार के दामाद तक पहुँचने से पहले मैं ने कई लोगों को देखा. वे लोग शायद रात में भी कहीं काम करके थक जाते है इसीलिए यहाँ आकर अपनी रात की नींद पूरी करते हैं. मैंने वहाँ एक अजीब सी बात देखी. मैंने देखा कि जहां आदमी किसी का इंतज़ार करते-करते सो रहे थे वहाँ पर के फंके बड़ी धीमी गति से चल रहे थे. और जहाँ की कुर्सी और मेज खाली थी वहां तेज गाती से.
कहीं-कहीं पर तेज गति वाले फंके के नीचे भी एकाद आदमी सोया दिखाई दे रहा था. उनके सामने कई सारी फाइलें रखी हुई थीं. मगर उनके सामने रखी गई लम्बी बेंच पर कोई नहीं बैठा था. मैं यह सब अजीबो गरीब नज़ारे देखता हुआ आगे बढ़ रहा था. तभी घड़ी ने अपना घंटा बजा दिया और बताया कि 11:00 बजे हैं.
अमन भैया हमारे रिश्तेदार की कुर्सी तक पहुँच गए थे. मगर निराश लग रहे थे. क्योकि अभी हमारे किसी दूर के रिश्तेदार के दामाद जी आफिस नहीं पधारे थे. वहाँ पर बैठे एक चपरासी से पता चला कि बस वे अब आते ही होंगे. उनके आने का समय बस अभी हो रहा है. जब आधे घंटे तक भी वे नहीं आये तब अमन भैया को गुस्सा आया और गुस्से में ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर कहा चलो घर चलते हैं, लगता है अभी सरकारी दामाद जी का आने का समय नहीं हुआ है. तब मुझे पता चला कि हमारे किसी दूर के रिस्तेदार के दामाद याने कि सरकारी दामाद. जब हम दोनों ऊबकर आफिस के बाहर चले जा रहे थे तभी एक चपरासी भागता हुआ आया और हमें आवाज देने लगा राजा बाबू आ गए हैं और हमें बुला रहें हैं. हम दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे क्योंकि दरवाजा तो हमारे सामने है और दामाद बाबू कैसे भीतर पहुँच गए?

2 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अरे भैया समझा करो... एक दस की पत्ति आपका समय बचा सकती थी :)

डॉ.बी.बालाजी said...

@ चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
सलाह के लिए धन्यवाद सर.

जन लोकपाल के लागू होने के बाद शायद स्थितियाँ बदल जाएँगी.
सरकारी दफ्तर को तब जाना ठीक होगा.