Friday 30 September 2011

ऐनक

ऐनक
एक मैंने
अपने बच्चे को खरीद कर दी
उसकी जिद्द थी
दुनिया को रंगीन
देखने की.

दुकान पर की रंगीन ऐनकें
बारी-बारी से चढ़ा
अपनी आखों पर
कभी हँसता
कभी ताली बजाता.

सफ़ेद शीशे वाली ऐनक
पहनकर उसने पाया
'दुनिया रंगीन अच्छी नहीं लगती
साफ़-सफ़ेद अच्छी लगती है
बिना ऐनक के सुन्दर दिखती है'.

5 comments:

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा said...

एक से रंग में
रंग देते हैं सारी दुनिया को
रंगीन चश्मे.
जिस रंग का चश्मा
उस रंग की दुनिया.

समझदार है बालाजी का बेटा
देखना चाहता है
दुनिया को सातों रंगों में .

उसे चश्मा नहीं चाहिए;
नज़र है उसके पास अपनी खुद की.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बिन चश्में के ही जब दुनिया रंगीन लगे तो फिर चश्मा काहे? बच्चे से सबक लें, बच्चे झूठ नहीं बोलते :)

डॉ.बी.बालाजी said...

@ऋषभदेव शर्मा जी
धन्यवाद सर.

@ चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी
धन्यवाद सर.

Kavita Vachaknavee said...

आत्म-प्रवंचना से दूर रहें बच्चे तो दुनिया सुंदर हो जाए; और जब कहीं वे बच्चे लड़का हों,तब तो और भी बेहतर हो जाए।

डॉ.बी.बालाजी said...

@ डॉ कविता वाचक्नवी जी

धन्यवाद मैडम.