Sunday 20 November 2011

भीड़ में अकेला

भीड़ में अकेला

लगता उसे
भीड़ उस ही के साथ हैं
चलने लगता वह
उसके साथ जो
उसकी बगल से निकल जाता
कभी बाएँ
कभी दाएं
कभी सीधे
कभी पीछे
लौट आता
करजर घूमाता
सोचता
मौस घूमाता
सोचता
मेरे साथ कौन है?
मैं किस-के साथ हूँ?
यहाँ किस ने लाया मुझे ?
मैं अब कहाँ हूँ?
ज्यों वह अब तक वह कोमा में था
होश में आने का प्रयास करते - करते
किसी अनजान साईट पर चला जाता है
ज्यों किसी भवंडर में फंसा हो
बाहर छह कर
भी नहीं निकल पाता है.

7 comments:

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा said...

भीड़ में अकेला
फिर भी ठीक

उसका क्या, जो
भाड़ में अकेला?

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

तभी तो गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था- एकला चलो रे!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...
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चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...
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uday said...

भीड़ में अकेला ,सर ये अकेलों की ही भीड़ है
चलती है भीड़ ये अकेलों के ही पीछे .
छोड़ते है ये जब हम हो जाते है अकेले .
जुड़ते है ये जब फिर भीड़ की भीड़ है .

प्रेम सरोवर said...

इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।

मनोज कुमार said...

इस ब्लॉग पर आना अच्छा लगा। आता रहूंगा।