Monday, 20 February 2012

फकीरीपन

अपनी इच्छा
खो चुकने के बाद
स्वाद हीन
नाद रहित
अस्पृश्य जीवन
जीने को विवश
वह
होना नहीं चाहता
अपनी इच्छा
खोना नहीं चाहता
ललकारता है
उनके बनाए कानून
तोड़ता है
फकीरीपन ओढ़ता है।

लालसा

संकीर्ण मन
कट रहा जीवन
पूछता कौन?

Monday, 16 January 2012

कुछ कहती क्यों नहीं?

कुछ कहती क्यों नहीं?
कहो, अकेलेपन को यूहीं
नहीं ढो,
तुम खड़ी जिस पार
धरती की मिट्टी
उपजाऊ है
रोपो
अपने विचार, भाव, संवेदनाएं
पीली-पीली
सरसों की तरह
कई कविताएँ
उग जाएँगी
गेंहूं की बालियों की तरह
अंकुरित हो फैल जाएँगी
मन के खेत पर
नहीं सहो,
कुदाल से उकेरो
अपनी बेबसी
रचो.


वे दोनों

वे दोनों
बातें
कहाँ करते हैं ?
चुप-चाप बैठे
आकाश की सफ़ेद पाटी
पर, काले-काले शब्दों को
आँखों से अंकित
कर, उकेरते हैं
अक्षरों की मालाएं
बुनते-बुनते
उठकर विपरीत दिशा
में, जाते
चले जाते हैं.


दीवार पर

दीवार पर
अपने कमरे की
आपने अपना नाम
कभी लिखा होगा
डांट सुनी होगी
'दीवार गंदी मत करो'

गली मोहल्ले की सड़क
छिलती है
छिली जाती है
बहुत बड़ी नुकीली पेंसिल से
कई नाम लिखे जाते हैं
मिटते नहीं
कभी मिटाए जाते नहीं
दबाए जाते हैं.

गिरी दीवारों की पुरानी
मिट्टी
मलबा
दबा देता है सारे नाम.

नल की
पाइप लाइनों से
गंदे पानी के पाइपों से
चिपके काक्रोच
नामों को खा-खाकर
अपनी आबादी बढाते है.

रात-अंधरे-शांत
ऊपरी दुनिया की सैर पर
अपनी दुनिया को लेकर
निकल पड़ते हैं.

एक
कमरे की दीवार पर चढ़ता
लिखकर कटा नाम देखता
अंतिम अक्षर में लगी मात्रा
पसंद कर चाटने लगता
अचानक उस पर बढ़ता
साया देखकर
यहाँ-वहाँ भागने की नाकाम कोशिश
'हिट-बेगान बेकार हो गए हैं
इनका इलाज यही है'

'तुम क्या देख रहे हो
चलो, सो जाओ'

सुबह जल्दी उठना है
वर्ना लेट मार्किंग होगी.'

विचलित मन की व्यथा सुनाने

विचलित मन की व्यथा सुनाने
फुर्सत की खोज करता हूँ.

भीड़ से होड़ करके
तुम्हारे पास आता हूँ.

मंदिर की घंटियाँ
बजतीं, चुप हो जातीं
मेरा मन बज उठाता
भीड़ में
एकांत में
सुनने नदी के तट पर जाता हूँ
बहती है
जंगल के बीच से
कभी शांत
कभी कलल-कलकल
कलल-कलकल
ध्वनि करती हुई वह.

Sunday, 20 November 2011

भीड़ में अकेला

भीड़ में अकेला

लगता उसे
भीड़ उस ही के साथ हैं
चलने लगता वह
उसके साथ जो
उसकी बगल से निकल जाता
कभी बाएँ
कभी दाएं
कभी सीधे
कभी पीछे
लौट आता
करजर घूमाता
सोचता
मौस घूमाता
सोचता
मेरे साथ कौन है?
मैं किस-के साथ हूँ?
यहाँ किस ने लाया मुझे ?
मैं अब कहाँ हूँ?
ज्यों वह अब तक वह कोमा में था
होश में आने का प्रयास करते - करते
किसी अनजान साईट पर चला जाता है
ज्यों किसी भवंडर में फंसा हो
बाहर छह कर
भी नहीं निकल पाता है.