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Wednesday, 23 May 2012

'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन' पर चर्चा और कवि गोष्ठी

हैदराबाद की प्रमुख साहित्यिक संस्था कादंबिनी क्लब  की मासिक संगोष्ठी में  गत रविवार  २० मई, २०१२ को सम्मिलित होने का सुअवसर मिला. डॉ अहिल्या मिश्र जी ने आदेश पूर्वक बुलाया था. इसलिए न जाने का प्रश्न था ही नहीं. 

पहले सत्र में डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा की नई ताजी किताब 'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन ' पर चर्चा हुई.श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने पुस्तक के इक्कीसों निबन्धों पर अपनी बेबाक राय जाहिर की. उन्होंने कहा - सारे निबंध बढ़िया हैं. हिंदी पाठकों को तेलुगु साहित्य की अच्छी जानकारी मिलती है. उन्हें इस बात का जरुर अफसोस था कि तेलुगु के कबीर कहे जाने वाले वेमना पर इस पुस्तक में कोई आलेख नहीं है.  

डॉ मदनदेवी पोकरणा ने कहा - डॉ जी नीरजा की भाषा सरल और सुबोध है. पुस्तक की सामग्री पठनीय है.  इन निबंधों से हिंदी भाषी को तेलुगु साहित्य की कम शब्दों में अधिक सूचना मिलती है. 

तीसरे समीक्षक के रूप में मेरी बारी आई तो मैंने जो-जो मन में आया सब कह डाला क्योंकि बहुत दिन बाद सुअवसर मिला था. मेरे विचार से डॉ जी नीरजा की विवेच्य पुस्तक में १५वीं शताब्दी से लेकर २०वीं शताब्दी तक के तेलुगु के साहित्यकारों को शामिल किया गया है. तेलुगु के प्रसिद्ध पद लेखक, संगीतकार तथा कीर्तनकार अन्नमाचार्य और  त्यागराज को पढते समय तुलसी, सूर और मीरा बाई  की अनायस ही याद आती है साथी ही इन साहित्यकारों पर बने  तेलुगु फिल्मों के कुछ दृश्य भी बड़े ही सहज रूप में स्मृति पटल पर अंकित हो जाते हैं.  लेखिका ने तेलुगु साहित्यकारों की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चेतना को रेखांकित किया हैं.  पुस्तक तुलनात्म दृष्टी से शोध करने के इच्छुक शोधार्थी के लिए बहुत ही उपयोगी है. यह सही है कि पुस्तक में वेमना पर केंद्रित कोई आलेख नहीं है पर मेरे विचार से केवल १३२ पृष्ठों की किताब में और कितनी सामग्री दी जा सकती है. जिज्ञासु पाठक को थोड़ी और प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि लेखिका की यह पहली पुस्तक है और मुझे आशा है कि लेखिका की  कलम से भविष्य में तेलुगु  साहित्य की ऐसी ही ज्ञानवर्धक सामग्री जरुर आएगी. वैसे भी यह कोई तेलुगु साहित्य के  संपूर्ण इतिहास की पुस्तक नहीं है बल्कि स्वतंत्र निबंधों का संकलन है.

क्लब की संयोजिका डॉ अहिल्या मिश्र ने लेखिका की प्रशंसा करते हुए कहा - यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि तेलुगु साहित्य में अवधान विधा की परंपरा अभी भी चल रही है. लेखिका ने जटिल विषयों को बड़ी ही सरल भाषा और सहज शैली में प्रस्तुत किया है. इसी से पुस्तक की पठनीयता बढ़ी है.

अध्यक्ष आसन से संबोधित करते हुए डॉ ऋषभ देव शर्मा ने पुस्तक लेखन की पृष्ट भूमि पर चर्चा करते हुए बताया कि 'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन' एक तरफ तो अपनी सहज पठनीयता के कारण ध्यान खींचती है तथा दूसरी ओर इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इसमें पिछले पांच-छह दशक के तेलुगु साहित्य की विभिन्न विधाओं की उपलब्धियों को अत्यंत पारदर्शी ढंग से हिंदी पाठक के समक्ष रखा गया है. 

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में कवि गोष्ठी संपन्न हुई. इसकी भी अध्यक्षता डॉ शर्मा ने ही की. उन्होंने अपने नए कविता संग्रह 'देहरी' से कई सारी स्त्री पक्षीय कविताएँ सुनाकर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया. यों तो बीस-पच्चीस कवियों ने रचनाएँ सुनाई होंगी लेकिन लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, भंवर लाल उपाध्याय,  डॉ जी             नीरजा, डॉ अहिल्या मिश्र, ज्योति नारायण, गोविंद मिश्र और  हैदराबाद की श्रेष्ठतम कवयित्री श्रीमती विनीता शर्मा जी की कविताओं ने मुझे काफी प्रभावित किया. तीन कविताएं मैंने भी पढ़ी - वे दोनों, भीड़ में अकेला और ऐनक.


बीच में जल-पान की भी व्यवस्था थी. अच्छा घरेलू-सा माहोल बन गया था. बढ़िया लगा.   

फोटो उपलब्ध कराने के लिए श्रीमती संपत देवी मुरारका का धन्यवाद.