Friday 24 July 2015

हिंदी का महत्व

हिंदी  इस देश का गौरव है, हिंदी  भविष्य की आशा है

हिंदी  हर दिल की धड़कन है, हिंदी  जनता की भाषा है.
भारत विविधताओं का देश है. यहाँ अलग-अलग संप्रदाय, जाति, धर्म, भाषा और संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते हैं. इसीलिए इसे अनेकता में एकता वाला देश कहा जाता है. मेरा मानना है कि इस एकता को बनाने और बनाए रखने वाले दो तत्व हैं –एक भारतीय संस्कृति और परंपराएं तथा दूसरा इसकी राष्ट्रभाषा हिंदी. विश्वभर में भारत अपनी संस्कृति, सभ्यता और हिंदी भाषा के लिए विशेषरूप से पहचाना जाता है. लगभग एक हजार वर्षों से यह भारत की संपर्क भाषा होने के साथ-साथ दक्षिण एशिया में व्यापार की भाषा है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषाएँ प्रचलन में हैं. इतनी सारी अलग-अलग भाषाएँ बोलने वालों  को एक सूत्र में बांधने का काम हिंदी ही करती है. इसीलिए वह हमारी राष्ट्रभाषा है.

हिंदी भाषा का साहित्यिक भंडार भी काफी बड़ा और लोकप्रिय है. कबीर, सूरदास, तुलसीदास, रहीम, मीरांबाई, बिहारी, प्रेमचंद और  मैथिलीशरण गुप्त जैसे अनेक महान रचनाकारों ने इसके साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं.     

हिंदी भारत की आधुनिक भाषाओं में सबसे अधिक बोली-समझी जाने वाली भाषा है. यह कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और असम से लेकर गुजरात तक बोली-समझी जाती है. इसकी  इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसे देश की राजभाषा का दर्जा दिया गया.

भारतीय संविधान ने भारत के विभिन्न राज्यों और प्रांतों में बोली जाने वाली 22 भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं का दर्जा देकर सम्मानित किया है और देश की राजकाज की भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया है. संविधान के 343 वें अनुच्छेद में यह कहा गया है कि संघ की राजभाषा देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी होगी. अनुच्छेद 351 में कहा गया है कि इसके प्रचार-प्रसार का दायित्व केंद्रीय सरकार पर है. 

हिंदी में कंप्यूटर पर काम करना और मोबाइल से एस एम एस भेजना भी आसान हो गया है. आज हिंदी विश्व के 130 विश्वविद्यालयों में पढ़ी-पढ़ाई जाती है. हिंदी सिनेमा और धारावाहिक विश्व भर में प्रसिद्द हैं. विश्व के कई देशों में करोड़ों लोग हिंदी बोलते हैं. अधिक संख्या में बोली जाने वाली भाषाओं में चीन के बाद हिंदी का दूसरा स्थान है.

प्रतिवर्ष हिंदी भाषा के सम्मान में, इसके प्रचार और प्रसार के लिए देशभर में 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ और विश्व में प्रचार के उद्देश्य से 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाया जाता है. केवल इतना ही नहीं इसके प्रचार के लिए ‘विश्व हिंदी सम्मलेन’ भी मनाया जाता है. अबतक 9 ‘विश्व हिंदी सम्मलेन’ मानाए जा चेके हैं. 10वां विश्व हिंदी सम्मलेन 10 से 12 सितंबर 2015 तक भोपाल में मनाया जाएगा.   

भारत के प्रतीकों में जिस तरह हम राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हैं, राष्ट्रगान सुनते ही सम्मान में खड़े हो जाते हैं, जिस तरह हम राष्ट्रीय पुष्प कमल, राष्ट्रीय पक्षी मोर को बड़े प्रेम से अपनाते हैं, राष्ट्रीय खेल हॉकी और राष्ट्रीय पशु बाघ पर गर्व करते हैं उसी तरह हमें अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी पर अभिमान है. हिंदीभाषी और भारतवासी होना हमारे लिए गौरव और सम्मान की बात है.

जय हिंद, जय हिंदी.  


                                                 


Thursday 2 August 2012

हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन


भारत डायनामिक्स लिमिटेड, भानूर, मेदक में दिनांक  30.07.2012  को  हिंदी शिक्षण योजना के अंतर्गत हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम के सत्र जुलाई-नवंबर, 2012   का  उद्घाटन संपन्न हुआ.     दिनांक 01.08 .2012  से नियमित रूप से हिंदी प्रशिक्षण की प्रबोध की कक्षाएं प्रारंभ हुईं. हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम के सत्र जुलाई-नवंबर, 2012   का उद्घाटन करते हुए भानूर इकाई के महा प्रबंधक (उत्पादन) श्री पी के दिवाकरन ने  कहा  कि हिंदी देश की राज भाषा है. हम सब को हिंदी सीखनी चाहिए और अपने साथियों को हिंदी सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए. हिंदी सीखने के बाद उसका यथावश्यक प्रयोग भी करना चाहिए. हिंदी का प्रचार-प्रसार करना केवल सरकार का दायित्व नहीं है. यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि  तकनीकी विषयों को हिंदी में बड़ी सरलता से प्रस्तुत किया जा सकता है. उन्होंने आशा जताई कि बीडीएल के कर्मचारी हिंदी सीखकर अपने-अपने अनुभाग में हिंदी का माहोल बनाने में सफल होंगे और इसका प्रयोग तकनीकी क्षेत्र में भी करने का प्रयास करेंगे.

विशेष अतिथि के रूप में उपस्थिति उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के अध्यक्ष एवं प्रोफ़ेसर डॉ ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि भारतीय संविधान एक ओर जहां भारत की जनता को कई सारे अधिकार देता है जैसे  मूल अधिकार, सूचना का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, सम्पति का अधिकार इत्यादि वहीं वह भारत की जनता से कुछ अपेक्षा भी करता है. सरकारी कामकाज पूरी तरह से राजभाषा हिंदी में करने की अपेक्षा उनमें से एक है. उन्होंने भारत की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि से कईं उदाहरणों से स्पष्ट किया कि भारत में प्राचीन काल  से ही त्रिभाषा सूत्र का पालन किया जा रहा है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि त्रिभाषा सूत्र का पालन करने के बावजूद भारत सरकार का कामकाज किसी विदेशी भाषा में हो यह शतप्रतिशत अस्वीकार्य होना चाहिए. अंग्रेजी के प्रयोग को नगण्य बनाने के लिए यह जरुरी है कि हम जल्द से जल्द हिंदी सीखकर उसके प्रयोग में वृद्धि करें. यह भारत के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक दायित्व है.  उन्होंने विश्वास प्रकट किया कि बीडीएल के कर्मचारी हिंदी सीखकर अपने हिंदी ज्ञान को केवल कक्षा तक सीमित नहीं रखेंगे. उसका विस्तार करेंगे और  भारत सरकार की भाषा नीति के अनुसार हिंदी शिक्षण के लक्ष्य को प्राप्त करने में अपना अमूल्य योगदान  देंगे.   

 बीडीएल, भानूर इकाई के उप महाप्रबंधक (का. एवं प्रशा.) श्री ए विजय कुमार चारी ने बीडीएल में किए जा रहे राजभाषा हिंदी कार्यान्वयन की प्रशंसा करते हुए प्रतिभागियों को सुझाव दिया कि हिंदी प्रशिक्षण में बड़ी संख्या में भाग लेकर बीडीएल द्वारा आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का लाभ उठाएं. उन्होंने कहा कि कोई भी कोर्स करने के लिए धन और समय खर्च करना पड़ता है लेकिन ऐसे सेवाकालीन  प्रशिक्षण में भाग लेकर इससे बचा जा सकता है. ऐसे कार्यक्रमों के द्वारा हम काम करते हुए ज्ञान अर्जित कर सकते हैं. ज्ञान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता. उन्होंने  प्रतिभागियों को प्रेरित करते हुए कहा कि हिंदी के माध्यम से अपार ज्ञानराशि  को संचित किया जा सकता है. उन्होंने इस सत्र के प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे अपने अन्य साथियों को भी हिंदी सीखने के लिए प्रेरित करेंगे और बीडीएल में हिंदी का वातावरण बनाने में प्रबंधन का सहयोग देंगे.

कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलन और सरस्वती वन्दना से किया गया. कार्यक्रम का संचालन कार्मिक विभाग के उप प्रबंधक श्री शोभित कुलश्रेष्ठ ने किया और हिंदी अनुवादक डॉ बी बालाजी ने धन्यवाद ज्ञापित किया.


Wednesday 23 May 2012

'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन' पर चर्चा और कवि गोष्ठी

हैदराबाद की प्रमुख साहित्यिक संस्था कादंबिनी क्लब  की मासिक संगोष्ठी में  गत रविवार  २० मई, २०१२ को सम्मिलित होने का सुअवसर मिला. डॉ अहिल्या मिश्र जी ने आदेश पूर्वक बुलाया था. इसलिए न जाने का प्रश्न था ही नहीं. 

पहले सत्र में डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा की नई ताजी किताब 'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन ' पर चर्चा हुई.श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने पुस्तक के इक्कीसों निबन्धों पर अपनी बेबाक राय जाहिर की. उन्होंने कहा - सारे निबंध बढ़िया हैं. हिंदी पाठकों को तेलुगु साहित्य की अच्छी जानकारी मिलती है. उन्हें इस बात का जरुर अफसोस था कि तेलुगु के कबीर कहे जाने वाले वेमना पर इस पुस्तक में कोई आलेख नहीं है.  

डॉ मदनदेवी पोकरणा ने कहा - डॉ जी नीरजा की भाषा सरल और सुबोध है. पुस्तक की सामग्री पठनीय है.  इन निबंधों से हिंदी भाषी को तेलुगु साहित्य की कम शब्दों में अधिक सूचना मिलती है. 

तीसरे समीक्षक के रूप में मेरी बारी आई तो मैंने जो-जो मन में आया सब कह डाला क्योंकि बहुत दिन बाद सुअवसर मिला था. मेरे विचार से डॉ जी नीरजा की विवेच्य पुस्तक में १५वीं शताब्दी से लेकर २०वीं शताब्दी तक के तेलुगु के साहित्यकारों को शामिल किया गया है. तेलुगु के प्रसिद्ध पद लेखक, संगीतकार तथा कीर्तनकार अन्नमाचार्य और  त्यागराज को पढते समय तुलसी, सूर और मीरा बाई  की अनायस ही याद आती है साथी ही इन साहित्यकारों पर बने  तेलुगु फिल्मों के कुछ दृश्य भी बड़े ही सहज रूप में स्मृति पटल पर अंकित हो जाते हैं.  लेखिका ने तेलुगु साहित्यकारों की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चेतना को रेखांकित किया हैं.  पुस्तक तुलनात्म दृष्टी से शोध करने के इच्छुक शोधार्थी के लिए बहुत ही उपयोगी है. यह सही है कि पुस्तक में वेमना पर केंद्रित कोई आलेख नहीं है पर मेरे विचार से केवल १३२ पृष्ठों की किताब में और कितनी सामग्री दी जा सकती है. जिज्ञासु पाठक को थोड़ी और प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि लेखिका की यह पहली पुस्तक है और मुझे आशा है कि लेखिका की  कलम से भविष्य में तेलुगु  साहित्य की ऐसी ही ज्ञानवर्धक सामग्री जरुर आएगी. वैसे भी यह कोई तेलुगु साहित्य के  संपूर्ण इतिहास की पुस्तक नहीं है बल्कि स्वतंत्र निबंधों का संकलन है.

क्लब की संयोजिका डॉ अहिल्या मिश्र ने लेखिका की प्रशंसा करते हुए कहा - यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि तेलुगु साहित्य में अवधान विधा की परंपरा अभी भी चल रही है. लेखिका ने जटिल विषयों को बड़ी ही सरल भाषा और सहज शैली में प्रस्तुत किया है. इसी से पुस्तक की पठनीयता बढ़ी है.

अध्यक्ष आसन से संबोधित करते हुए डॉ ऋषभ देव शर्मा ने पुस्तक लेखन की पृष्ट भूमि पर चर्चा करते हुए बताया कि 'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन' एक तरफ तो अपनी सहज पठनीयता के कारण ध्यान खींचती है तथा दूसरी ओर इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इसमें पिछले पांच-छह दशक के तेलुगु साहित्य की विभिन्न विधाओं की उपलब्धियों को अत्यंत पारदर्शी ढंग से हिंदी पाठक के समक्ष रखा गया है. 

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में कवि गोष्ठी संपन्न हुई. इसकी भी अध्यक्षता डॉ शर्मा ने ही की. उन्होंने अपने नए कविता संग्रह 'देहरी' से कई सारी स्त्री पक्षीय कविताएँ सुनाकर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया. यों तो बीस-पच्चीस कवियों ने रचनाएँ सुनाई होंगी लेकिन लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, भंवर लाल उपाध्याय,  डॉ जी             नीरजा, डॉ अहिल्या मिश्र, ज्योति नारायण, गोविंद मिश्र और  हैदराबाद की श्रेष्ठतम कवयित्री श्रीमती विनीता शर्मा जी की कविताओं ने मुझे काफी प्रभावित किया. तीन कविताएं मैंने भी पढ़ी - वे दोनों, भीड़ में अकेला और ऐनक.


बीच में जल-पान की भी व्यवस्था थी. अच्छा घरेलू-सा माहोल बन गया था. बढ़िया लगा.   

फोटो उपलब्ध कराने के लिए श्रीमती संपत देवी मुरारका का धन्यवाद.        

Monday 20 February 2012

फकीरीपन

अपनी इच्छा
खो चुकने के बाद
स्वाद हीन
नाद रहित
अस्पृश्य जीवन
जीने को विवश
वह
होना नहीं चाहता
अपनी इच्छा
खोना नहीं चाहता
ललकारता है
उनके बनाए कानून
तोड़ता है
फकीरीपन ओढ़ता है।

लालसा

संकीर्ण मन
कट रहा जीवन
पूछता कौन?

Monday 16 January 2012

कुछ कहती क्यों नहीं?

कुछ कहती क्यों नहीं?
कहो, अकेलेपन को यूहीं
नहीं ढो,
तुम खड़ी जिस पार
धरती की मिट्टी
उपजाऊ है
रोपो
अपने विचार, भाव, संवेदनाएं
पीली-पीली
सरसों की तरह
कई कविताएँ
उग जाएँगी
गेंहूं की बालियों की तरह
अंकुरित हो फैल जाएँगी
मन के खेत पर
नहीं सहो,
कुदाल से उकेरो
अपनी बेबसी
रचो.


वे दोनों

वे दोनों
बातें
कहाँ करते हैं ?
चुप-चाप बैठे
आकाश की सफ़ेद पाटी
पर, काले-काले शब्दों को
आँखों से अंकित
कर, उकेरते हैं
अक्षरों की मालाएं
बुनते-बुनते
उठकर विपरीत दिशा
में, जाते
चले जाते हैं.