हर्ष-उल्लास से भरी होती हैं कितनी
कभी-कभी उदासी भी छा जाती है
देखकर किसी दोस्त को उदास.
छोटा पौधा बढ़ते-बढ़ते
छायादार वृक्ष बनता है
आकाश को छूती उसकी बाहें
कुछ कहती जान पड़ती हैं.
हरी पत्तियों से भरा
मुस्कुराता कभी
ठहाका लगाकर हँसता
झूलता हवा में लहराता कभी
दोस्त जैसे, मेरा हँसता है.
हर मौसम में सहारा देता
मुसीबतों के छन
डटकर खड़ा पाया इसे.
जाते समय हाथ मिलाता है
बिदाई देता, जाने तक देखता रहता
पीछे से बुलाता
कोई भूली बात याद कराता
बतियाने लगता
ऐसे ही बहुतबार हम हाथ मिलाते
एक दूसरे से बिदाई लेते.
पेड़ की छाया छोड़ना
और
छोड़कर चले जाने की इच्छा होती नहीं मेरी.
4 comments:
पर्यावरण तो अच्छा दोस्त होता ही है। वैसे लगता है पडोसी व्यास जी की छाया भी पडी है:)
@ चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी.
धन्यवाद.
व्यास जी की छाया का तो पता नहीं मगर आपकी कुछ-कुछ छाया जरुर पड़ी होगी तभी तो मैं भी कोशिश कर रहा हूँ कि अपने ब्लॉग पर नियमित कुछ न कुछ अवश्य लिखूँ.
Beautiful creation on friend and environment .
पर्यावरण और दोस्त का बिम्ब किये अच्छी रचना ,बधाई
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