गणेश जी के आगमन पर दो भिन्न विचार.
1. गणेश जी के आए आज चार दिन हो गए. बेटे की जिद्द पर 'कुछ' मोहल्लों के गणेश जी को देखने जाना हुआ. सभी गली मोहल्लों के गणेश जी हमारे घर में विराजे गणेश जी के जैसे ही लगे. हाँ, मूर्तियों के आकार-प्रकार में अवश्य भिन्नता थी और विभिन्न मंडपों की सजावट भी अलग-अलग थी. लगता है लोगों का विश्वास भक्ति में कम बाह्य आडम्बरों में अधिक है. तभी तो एक होड़ लगी लगती है कि किस का 'गणपति' अधिक सुन्दर और बड़ा है.
2 . लेकिन सजावट देखकर एक बार मन अवश्य प्रसन्न हो जाता है. गणेश जी के अलग-अलग रूप देखकर ऐसा लगता है कि गणेश जी 'भिन्नता में एकता' अर्थात भारतीयता की पहचान कराते नजर आते हैं. हर्ष-उल्लास से भरे ये दस दिन गली-गली में हल-चल बढ़ा देते हैं.
2 comments:
धार्मिकता अर्थात कर्त्तव्यपरायणता घटती जा रही है और पाखंड तथा विद्वेष बढ़ते जा रहे हैं; ऐसे में भविष्य की चिंता होती है.
इन अवसरों का रचनात्मक उपयोग क्या हो सकता है?
मैं ऐसे उत्सवों में शायद ही जाता हूं क्योंकि इसके पीछे बाहूबल, धनबल और असमाजिक तत्व अधिक दिखाई देते हैं और भक्ति नगण्य। रात के बारह-एक बजे नींद खुल जाती है जब बाजे से अधिक शोर और पी-खाकर लोग नाचते हुए दूसरों की नींद हराम करते हैं। पैसे और पर्यावरण की बरबादी से अधिक कुछ नहीं लगता। शायद यह तीसरा भिन्न विचार है:)
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