लगता उसे
भीड़ उस ही के साथ हैं
चलने लगता वह
उसके साथ जो
उसकी बगल से निकल जाता
कभी बाएँ
कभी दाएं
कभी सीधे
कभी पीछे
लौट आता
करजर घूमाता
सोचता
मौस घूमाता
सोचता
मेरे साथ कौन है?
मैं किस-के साथ हूँ?
यहाँ किस ने लाया मुझे ?
मैं अब कहाँ हूँ?
ज्यों वह अब तक वह कोमा में था
होश में आने का प्रयास करते - करते
किसी अनजान साईट पर चला जाता है
ज्यों किसी भवंडर में फंसा हो
बाहर छह कर
भी नहीं निकल पाता है.
7 comments:
भीड़ में अकेला
फिर भी ठीक
उसका क्या, जो
भाड़ में अकेला?
तभी तो गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था- एकला चलो रे!
भीड़ में अकेला ,सर ये अकेलों की ही भीड़ है
चलती है भीड़ ये अकेलों के ही पीछे .
छोड़ते है ये जब हम हो जाते है अकेले .
जुड़ते है ये जब फिर भीड़ की भीड़ है .
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
इस ब्लॉग पर आना अच्छा लगा। आता रहूंगा।
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