दीवार पर
अपने कमरे की
आपने अपना नाम
कभी लिखा होगा
डांट सुनी होगी
'दीवार गंदी मत करो'
गली मोहल्ले की सड़क
छिलती है
छिली जाती है
बहुत बड़ी नुकीली पेंसिल से
कई नाम लिखे जाते हैं
मिटते नहीं
कभी मिटाए जाते नहीं
दबाए जाते हैं.
गिरी दीवारों की पुरानी
मिट्टी
मलबा
दबा देता है सारे नाम.
नल की
पाइप लाइनों से
गंदे पानी के पाइपों से
चिपके काक्रोच
नामों को खा-खाकर
अपनी आबादी बढाते है.
रात-अंधरे-शांत
ऊपरी दुनिया की सैर पर
अपनी दुनिया को लेकर
निकल पड़ते हैं.
एक
कमरे की दीवार पर चढ़ता
लिखकर कटा नाम देखता
अंतिम अक्षर में लगी मात्रा
पसंद कर चाटने लगता
अचानक उस पर बढ़ता
साया देखकर
यहाँ-वहाँ भागने की नाकाम कोशिश
'हिट-बेगान बेकार हो गए हैं
इनका इलाज यही है'
'तुम क्या देख रहे हो
चलो, सो जाओ'
सुबह जल्दी उठना है
वर्ना लेट मार्किंग होगी.'
2 comments:
एक एक कर सारा नाम चट हो जाता है उसी आदमी की तरह जो चुक चुका है :(
बहुत कठिन है डगर 'अंडर-वर्ल्ड' की, प्रियवर!
इलाज इतना सहज नहीं है.
Post a Comment